ये डर सताएगा ता-उम्र मेरी जान मुझे

ये डर सताएगा ता-उम्र मेरी जान मुझे

तिरे ख़्याल न करदें लहू-लुहान मुझे


तमाम उम्र मैं करता रहा सफ़र पे सफ़र

अज़ीज़ लगने लगी इस क़दर थकान मुझे


फ़क़त उदास नहीं हूँ मैं ख़ुद उदासी हूँ

न कर सकेगा कोई शख़्स शादमान मुझे


ऐ दोस्त जुर्म-ए-मोहब्बत की मत अज़ीयत पूछ

मिरे ख़िलाफ़ ही देना पड़ा बयान मुझे


लहू पिलाना है ख़ंजर को तशनालब रहकर

सुलगते दश्त में देना है इम्तिहान मुझे


मुझे ख़मोश ही रखना था ता-हयात अगर

ख़ुदारा किसलिए फिर दी गयी ज़बान मुझे


मैं इक कटोरे में पानी को भरके बैठ गया

ज़मीं पे लाना हुआ जब भी आसमान मुझे


हुनर दिखाना है अपना सुख़न के मक़तल में

ग़ज़ल बनाना है ये दर्द-ए-दिल "अमान" मुझे 

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