दश्त में जब हवाएँ खींचती हैं

दश्त में जब हवाएँ खींचती हैं

हर दिए की शुआएँ खींचती हैं


चाँद का नूर खींचे चेहरा तेरा

और ज़ुल्फ़ें घटाएँ खींचती हैं


छोड़कर यारों को न जाऊँ मगर

जाने दिल की अदाएँ खींचती हैं


जानिब-ए-दश्त ख़्वाबगह से मुझे

फिर किसी की सदाएँ खींचती हैं


अब तो लाज़िम है टूट जाना मेरा

मुझको चारो दिशाएँ खींचती हैं


इन खिलौनों की क्यों दुकानों से

अपने बच्चों को माएँ खींचती हैं


मुझको हर बार मुश्किलों से "अमान"

एक माँ की दुआएँ खींचती हैं

___


Next >

< Previous

Comments

Popular Posts