ये काम तेरा है तू सोच किसलिए रखे हैं

ये काम तेरा है तू सोच किसलिये रखे हैं

किताब-ए-दिल पा जबीनों के हाशिये रखे हैं


फरिश्ते फ़र्श से उठकर न जा सकेंगे कहीं

मिरी ज़ुबाँ पा अभी शैह के मरसिये रखे हैं


ये अश्क पलकों पा ठहरें तो ऐसा लगता है

किसी मकान की दहलीज़ पर दिये रखे हैं


पलक झपकने की सोचें तो किस तरह आँखें

नज़र में ख़ुल्द नहीं शैह के ताज़िये रखे हैं


नहीं हुसैन के जैसा कोई तवील कलाम

बदन रदीफ़ अगर ज़ख़्म क़ाफिये रखे हैं


ज़रूर फैलेगा वहदानियत का नूर अमान

सिनां पा सर नहीं तौहीद के दिये रखे हैं

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