वो सरे फ़र्श-ए-अज़ा खूँ रो रहा है कर्बला

 वो सरे फ़र्श-ए-अज़ा खूँ रो रहा है कर्बला
जो तेरी तस्वीर-ए-ग़म से आशना है कर्बला

हर नफ़स आती है इक मानूस सी ख़ुशबू मुझे

क्या मेरे अतराफ़ में तेरी हवा है कर्बला 


हुक़्म दे ज़र्रों को अपने लाशे सर्वर ढाँप दें

बात हुरमत की है दीं का मसअला है कर्बला


अश्क लेकर आँखों में, हाथों को पीछे बाँधकर

कौन ये जाए-नदामत पर खड़ा है कर्बला


लाशा-ए-असग़र नहीं रक्खा है शैह ने ख़ाक में

तेरे ख़ाली सीने में दिल रख दिया है कर्बला


ज़ालिमों ने जो पिन्हाया था अज़ीय्यत के लिए 

जिस्म-ए-आबिद का वही ज़ेवर बना है कर्बला


शाह कर देंगे उसे अपनी अता से गुलिस्ताँ

ज़िन्दगी-ए-हुर्र में जो दश्त-ए-ख़ता है कर्बला


ख़ुद सँवरता जाएगा किरदार भी बेशक 'अमान'

गर तुम्हारी ज़िन्दगी का आईना है कर्बला

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