हर एक हुर्र की ख़ता दरकिनार करते हैं

हर एक हुर्र की ख़ता दरकिनार करते हैं
खिज़ां-रसीदा को सरवर बहार करते हैं

वो अपने कुफ़्र को और पाएदार करते हैं
जो पत्थरों को ही परवरदिगार करते हैं

हम अपना अश्क अगर ज़ुल्फ़िक़ार करते हैं
हर एक फतवे की शैरग पा वार करते हैं

हम उनको सिर्फ़ फसादी शुमार करते हैं
ग़मे हुसैन में जो इंतिशार करते हैं

पड़े रहेंगे सुलगती ज़मीन पर ख़ंजर 
सफ़र सिनां पा फ़क़त ताजदार करते हैं

उठाके पर्दा-ए-ग़ैबत ओ आख़िरी अहमद
चले भी आओ कि सब इन्तिज़ार करते हैं

ऐ करबला तेरे मंज़र तो फ़िक्र से हैं परे 
बुझे चराग़ अँधेरे शिकार करते हैं

बता ऐ करबला आख़िर ये माजरा क्या है
तेरे ख़्याल मुझे सोगवार करते हैं

'अमान' रब्त रखा करते हैं हलाली से
हर इक बशर को कहाँ अपना यार करते हैं
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