वो शख़्स क़ब्र में भी रौशनी किया हुआ है
वो शख़्स क़ब्र में भी रौशनी किया हुआ है
जो ग़म में शाह के सीनाज़नी किया हुआ है
बुरीदा सर से है नोके सिनां पे महव-ए-कलाम
हुसैन मौत को भी ज़िन्दगी किया हुआ है
ऐ ख़ुश्क गर्दनों अब कोई वार मत करना
ये ज़ुल्म पहले से ही ख़ुदकुशी किया हुआ है
बचाके रखना सितम अपने क़हक़हों का गला
सग़ीर अपना तबस्सुम छुरी किया हुआ है
है उसके दस्त-ए-मुबारक में आब-ए-नहर-ए-फ़ुरात
मगर वो ज़ीनत-ए-लब तिशनगी किया हुआ है
हर एक लफ़्ज़ से यूँ भी लहू टपकता है
'अमान' दर्द-ए-जिगर शायरी किया हुआ है
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