क़हक़हे तो हों मगर ये गिर्या-ओ-ज़ारी न हो
क़हक़हे तो हों मगर ये गिर्या-ओ-ज़ारी न हो
मर ही जाएँ हम अगर शैह की अज़ादारी न हो
नोके नेज़ा पर जो पहुँचे मुस्कुराए ज़िन्दगी
ख़ौफ़ हमपर मौत का इक पल को भी तारी न हो
कितनी कोशिश करले बन सकता नहीं हुर्रे जरी
क़ल्ब में जिसके भी एहसास-ए-गुनहगारी न हो
कैसे आएगा तुम्हें जीने, सँभलने का हुनर ?
ग़र तुम्हारी ज़िन्दगी में कोई दुश्वारी न हो
नेमतें भी रूठ जाएँगी जो रूठेगा ख़ुदा
बाप से ऊँची ज़ुबाँ में देख गुफ़्तारी न हो
दस्त बस्ता इल्तेजा है नौहाख्वानों से मिरी
नौहाख्वानी, नौहाख्वानी हो कलाकारी न हो
जाग जाओ दोस्तों अब ग़फ़लतों की नींद से
ये न हो आ जाए वो और कोई तय्यारी न हो
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