फेरलो अपनी नज़र, मुझको हँसी आती है

फेरलो अपनी नज़र, मुझको हँसी आती है

जब कभी लगता है डर मुझको हँसी आती है


है अजब बात कि अपनो के बिछड़ जाने पर

सब तो रोते हैं मगर मुझको हँसी आती है


खून रोता है उधर याद में वो मेरी और

याद में उसकी इधर मुझको हँसी आती है


चुपके चुपके मेरे कमरे में उदासी मेरी

रोने लगती है अगर मुझको हँसी आती है


अपने माशूक़ की यादों में किसी आशिक़ को

पीटता देखके सर मुझको हँसी आती है


अपने हाथों से बनाता है ख़ुदा, पूजता है

देखकर हाल-ए-बशर मुझको हँसी आती है


हद तो पहले भी थी रोता था हर इक लम्हा मैं

हद ये अब शाम-ओ-सहर मुझको हँसी आती है

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