मुझे तक़सीम टुकड़ों में जो करना है तो बिस्मिल्लाह

मुझे तक़सीम टुकड़ों में जो करना है तो बिस्मिल्लाह

मिरे लाशे के ऊपर से गुज़रना है तो बिस्मिल्लाह


मिरा दिल मिस्ल-ए-सहरा है, यहाँ काँटे हैं पत्थर हैं

अगर फिर भी तुम्हें इसमें उतरना है तो बिस्मिल्लाह


बहुत इल्ज़ाम हैं मुझपर किसी अहसान की मानिंद

तुम्हें भी गर कोई अहसान करना है तो बिस्मिल्लाह


उठाना बोझ लोगों का अज़ल से काम है मेरा

तुम्हें भी बोझ अपना मुझ पा धरना है तो बिस्मिल्लाह


तुम्हें तक़लीफ़ होगी गर मुझे हासिल हुई राहत

नमक तुमको मिरे ज़ख़्मों में भरना है तो बिस्मिल्लाह


हर इक वादा गिना सकता हूँ उँगली पर तुम्हारा मैं

मगर वादों से अब तुमको मुकरना है तो बिस्मिल्लाह


मुक़फ़्फ़ल खिड़कियाँ हैं, और पंखा भी है रस्सी भी

'अमान' आओ तुम्हें ऐसे ही मरना है तो बिस्मिल्लाह

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